अरब डायरी– 6 : फिल्म इंडस्ट्री में मेरा कोई गॉडफादर नहीं है – प्रियंका चोपड़ा
अजित राय, जेद्दा, सऊदी अरब से
– प्रियंका चोपड़ा को रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में सम्मानित किया गया
सऊदी अरब के जेद्दा में आयोजित चौथे रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में भारतीय अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा को ‘आनरेरी अवॉर्ड’ प्रदान किया गया। यह अवॉर्ड उन्हें हालीवुड की मशहूर अभिनेत्री सारा जेसिका पार्कर ने प्रदान किया। इस अवसर पर प्रियंका चोपड़ा की फिल्मी यात्रा की एक झांकी भी दिखाई गई। प्रियंका चोपड़ा अपने पति निक जोनास के साथ रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में शामिल हुईं और रेड कार्पेट पर भी चलीं। उन्होंने सम्मानित होने के बाद आयोजकों को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह समारोह दुनिया भर के सिनेमा का नया घर बनता जा रहा है। अरब देशों और भारत के बीच फिल्म निर्माण की बहुत उम्दा सम्भावनाएं है। उन्होंने कहा कि वे अपने प्रोडक्शन हाउस की ओर से जल्दी ही फिल्मों के सह-निर्माण की योजनाओं की घोषणा करेंगी। इस अवसर पर उन्होंने अपने माता-पिता मधु और अशोक चोपड़ा को बार-बार याद किया।
दर्शकों से संवाद कार्यक्रम में प्रियंका चोपड़ा ने विस्तार से बचपन से लेकर हॉलीवुड तक की अपनी यात्रा के बारे में बातें की।
उन्होंने कहा कि उनके माता-पिता भारतीय सेना में डॉक्टर थे और हर निर्णय में हमेशा साथ देते थे। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने सन् 2000 में 96 देशों की प्रतिभागियों के बीच मिस वर्ल्ड का खिताब जीता तो उनकी उम्र केवल 18 साल थी। बाद में यह सफर जारी रहा, जब उन्हें दो-दो बार नेशनल अवॉर्ड और पांच बार फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया। भारत सरकार ने 2018 में उन्हें ‘पद्म श्री’ भी प्रदान किया। जब वे फिल्मों में आईं, तो वे किसी को नहीं जानती थीं। कम उम्र में, करियर की शुरुआत में ही उन्हें अक्षय कुमार और सनी देओल जैसे मंजे हुए अभिनेताओं के साथ काम करने का मौका मिला। उन्होंने कहा कि बरेली जैसे छोटे शहर की लड़की के लिए बॉलीवुड से हॉलीवुड तक का सफर आसान नहीं था। पिता अशोक चोपड़ा की दी हुई सीख कि खुद को पानी की तरह बना लो, बहुत काम आई। उन्होंने कहा कि वे हमेशा समस्या की जगह समाधान पर फोकस करती हैं। उन्होंने कहा कि जल्दी ही उन्हें पता चल गया था कि वे कोई भी चीज बहुत शीघ्र सीख सकती हैं। वे ईश्वर में विश्वास रखती हैं, इसलिए हर बाधा को एक अवसर के रूप में लिया।
उन्होंने अक्षय कुमार के साथ अपनी शुरुआती फिल्म ‘ऐतराज’ का अनुभव साझा करते हुए कहा कि वह एक अलग तरह की औरत की भूमिका थी। सोनिया का वह रोल एक चुनौती थी। उन्होंने कहा, “फिल्मी दुनिया का मुझे कोई अनुभव नहीं था। मैंने सोचा कि फिल्म में मुझे अपने चरित्र को जज नहीं करना चाहिए। इससे मुझे उस चरित्र को निभाने की क्षमता आ गई। इसी तरह ‘कृश’ में हुआ। यह भारत का पहला बड़ा सुपरमैन था, हालांकि ‘शक्तिमान’ सीरियल आ चुका था। राकेश रोशन ने मुझे साधारण सलवार-कमीज़ में एक फ्यूनरल (अंतिम संस्कार) में देखा था। उन्होंने अब्बास-मस्तान से कहा कि वे ‘ऐतराज़’ फिल्म के मेरे कुछ रशेज देखना चाहते हैं। मैंने उनसे अनुरोध किया कि वे मेरे आपत्तिजनक दृश्यों को मत दिखाएं। हालांकि राकेश रोशन ने वे सारे दृश्य देखे और मुझे ‘कृश’ में ले लिया। जब मधुर भंडारकर ने ‘फैशन’ में मुझे लीड रोल में लिया, तो कहा गया कि जिन फिल्मों में औरतें लीड रोल में होती हैं, वे बाक्स ऑफिस पर अच्छा नहीं करती हैं। मैंने खुद ही जगह-जगह जाकर फिल्म का प्रोमोशन किया।”
उन्होंने यह भी कहा, “फिल्म इंडस्ट्री में मेरा कोई गॉडफादर नहीं था। मैं किसी पावरफुल फिल्मी खानदान से नहीं थी। किसी को जानती तक नहीं थी। मुझे जो कुछ भी मिला, वह सब मेरी मिहनत, माता-पिता के आशीर्वाद और ईश्वर की कृपा से मिला। मुझे उस दिन बहुत खुशी हुई, जब मेरे पिता ने अपने घर की नेमप्लेट में खुद के नीचे मेरा नाम भी लिखवाया।” उन्होंने कहा, “जब अनुराग बसु ने ‘बर्फी’ की कहानी सुनाई, तो पहले तो मुझे लगा कि यह रोल नहीं कर पाऊंगी, पर लहरों के खिलाफ जाना मेरी आदत बन चुकी थी। उन दिनों रणबीर कपूर न्यूयॉर्क में ‘अनजाना अनजानी’ की शूटिंग कर रहे थे। मैं एक इवेंट में जाने की जल्दी में थी। अनुराग बसु ने कहा कि ठीक है, वे दूसरी फिल्म के लिए मुझसे बाद में मिलेंगे। मैंने उनसे पांच दिन का समय मांगा। मैं स्पेशल चिल्ड्रेन स्कूल गई और उन बच्चों के साथ सीखा और आ गई सेट पर। मैंने ढेर सारे वीडियो देखे। एक-एक मूवमेंट को सीखा। अनुराग बसु ने मेरी हिचक तोड़ने के लिए मुझसे गालियां देने को कहा। मैंने अंग्रेजी में गालियां देना शुरू किया, तो मना कर दिया। कहा कि हिंदी में गंदी-गंदी गालियां दो। मुझे लगा कि मैं नहीं कर पाऊंगी, पर कई तरह के अभ्यास के बाद मुझे वह रोल मिल गया।”
प्रियंका चोपड़ा ने कहा कि उन्हें तरह-तरह की भूमिकाएं पसंद हैं। वे किसी एक खांचे में नहीं बंधना चाहती थीं। इसीलिए उन्होंने ‘डान’ और ‘गंगाजल’-2 में एक्शन रोल भी किया। ‘गुंडे’ में भी अलग तरह का रोल था। उन्होंने आगे बताया, “जब ‘मेरीकॉम’ की शूटिंग चल रही थी, तभी मेरे पिताजी की मृत्यु हो गई। मैं अंदर से दुखी थी। तीन-चार दिन बाद ही शूटिंग थी। मैंने सचमुच के फाइट सीन में अपने सारे दुख निकाल दिए। यहां तक कि मैं शादी के दौरान भी शूटिंग करती रही।”
उन्होंने प्रोडक्शन हाउस खोलने के सवाल पर कहा कि जो रोल वह करना चाहती हैं या जैसी फिल्में करना चाहती हैं, वह उन्हें नहीं मिल रही थीं। दूसरा कारण यह था कि उन्हें देशभर की युवा प्रतिभाओं को फिल्म निर्माण में मंच देना था। उन्होंने कहा, “मुझे सिनेमा का क्राफ्ट आता है। इस साल मेरी तीन एक्शन फिल्में आ रही हैं। मैं ‘ह्वाइट टाइगर’ से भी इसीलिए जुड़ी, क्योंकि वह किताब मेरे दिल के करीब थी। मुझे अभी बहुत कुछ करना है और परिवार को भी समय देना है। अभी बहुत सारी ऐसी कहानियां हैं, जिन्हें सामने लाना है।”
(अजित राय कला, साहित्य, रंगकर्म लेखन के क्षेत्र में सुपरिचित नाम हैं और “सारा जहां” के लिए नियमित रूप से लिखते हैं)