सिनेमा

अरब डायरी- 5 : इस्लामी कट्टरवाद के खिलाफ अफगानी औरतों के साहस और दोस्ती की बेमिसाल कहानी ‘सीमा का गीत’

अजित राय, जेद्दा, सऊदी अरब से

रोया सदात की साहसिक फिल्म ‘सीमा का गीत’ तालिबानी शासन से पहले के अफगानिस्तान (1972) से शुरू होती है और आज के तालिबानी शासन तक सफर करती है। उस समय औरतें न सिर्फ आजाद थीं, बल्कि अपनी मर्जी की मालिक भी थीं। कालेजों-विश्वविद्यालयों में लड़कियां गीत-संगीत-नृत्य और आधुनिक फैशन सीख सकती थीं। यह वही दौर था, जब पूरा अफगानिस्तान विरोधी राजनीतिक विचारधाराओं के बीच उबल रहा था। पहाड़ों में इस्लामी कट्टरपंथी मुजाहिद्दीन पनप रहे थे और सेना से उनकी छिटपुट लड़ाइयां चलती रहती थीं। यह वही दौर था, जब दुनिया अमेरिका और रूस के नेतृत्व में दो खानों में बंटी हुई थी। लेकिन तब अफगानिस्तान एक राहत भरा देश था, जहां औरतें आजाद थीं।

रोया सदात की एक फिल्म ‘अ लेटर टू दि प्रेसिडेंट’ 2018 में ऑस्कर पुरस्कार के लिए अफगानिस्तान से आफिशियल प्रविष्टि थी। अब वह अमेरिका में शरणार्थी हैं। अपने देश में आने पर उन्हें मौत की सजा हो सकती है। फिल्म के कलाकारों ने एक महत्वपूर्ण बात कही, “जिस सऊदी अरब में इस्लाम का जन्म हुआ, वहां पर औरतों को इतनी आज़ादी है और अफगानिस्तान के तालिबानी शासन में उन्हें कोई आजादी नहीं है। शिक्षा औरतों का अधिकार है। तालिबान हमारे देश पर कब्जा कर सकता है, पर हमारी आवाज नहीं ले सकता। हमारे यहां की लाखों औरतें रोज भुगत रही हैं। हमारी लड़ाई जारी रहेगी।”

सीमा और सुरैया दो घनिष्ठ सहेलियां हैं। सीमा विश्वविद्यालय में संगीत सीखती है और बहुत उम्दा गाती है। सुरैया एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आती है और औरतों की आज़ादी के लिए राजनीति करती है। वह सबसे ताकतवर कम्युनिस्ट पार्टी की महिला विभाग की प्रमुख बन जाती है। सीमा को राजनीति से कुछ लेना-देना नहीं है। वह अपनी पारंपरिक कला और संगीत की रोमांटिक दुनिया में खुश है। सुरैया और सीमा की दोस्ती बहुत गहरी है, हालांकि दोनों के राजनीतिक विचार अलग-अलग हैं। दोनों औरतों की दोस्ती में उनकी आर्थिक-सामाजिक हैसियत कभी आड़े नहीं आती। सीमा विश्वविद्यालय के एक सहपाठी से पहले प्रेम, फिर विवाह करती है और यहीं से उसकी जिंदगी बदलने लगती हैं। उसका पति मुजाहिद्दीन लड़ाकों के संपर्क में है। वे दोनों उनकी गुप्त बैठकों में भाग लेने लगते हैं। उन्हें लगता है कि वे इस्लामी जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं। सुरैया इसके ठीक विपरीत कम्युनिस्ट है और औरतों की बराबरी तथा आज़ादी के लिए काम कर रही है। इसके बावजूद, दोनों की दोस्ती बरकरार है।

अफगानिस्तान की सेना द्वारा तख्तापलट के बाद स्थितियां बदल रहीं हैं। सीमा और उसके पति की गतिविधियों की जानकारी सेना को है। एक दिन सेना उसके घर पर छापा मारकर सीमा के पिता की हत्या कर देती है। बहुत साल पहले सुरैया के पिता को भी गलत आरोप लगाकर सेना ने ही मारा था। सुरैया, सीमा और उसके पति को अपनी कार में बिठाकर काबुल से बाहर पहाड़ों में मुजाहिद्दीन के पास छोड़ आती है। अब सीमा के हाथ में संगीत का वाद्य यंत्र नहीं, मुजाहिद्दीन द्वारा थमाई गई बंदूक है। एक मार्मिक दृश्य में सीमा, सुरैया को अपना सबसे प्रिय वाद्ययंत्र देती है और कहती है कि अब उसे इसकी जरूरत नहीं है। लेकिन सभी सेना के हाथों पकड़े जाते हैं। सीमा और सुरैया अब जेल में हैं। सीमा पर देशद्रोही होने का आरोप है। उसे जेल में भयानक रूप से टॉर्चर किया गया है। संगीत को अपना खुदा माननेवाली एक मासूम लड़की का नियति के जाल में फंसकर मर जाना हृदयविदारक है। कुछ दिन बाद, अफगानिस्तान पर रूसी सेना का कब्जा होता है और सुरैया कम्युनिस्ट पार्टी की नेता होने के कारण आज़ाद कर दी जाती है। सीमा मर चुकी है और उसकी बेटी अब सुरैया के साथ है। राजनीति बदलती है, पर औरतों की बराबरी और आज़ादी के सवाल नहीं बदलते।

‘सीमा का गीत’ फिल्म की शुरुआत आज के तालिबानी शासन में काबुल में सुरैया के नेतृत्व में औरतों के विरोध प्रदर्शन से होती है। पुलिस और सेना के जवान निहत्थी औरतों पर गोली चलाते हैं और कई औरतों मारी जाती हैं। सुरैया घर लौटती हैं, टेप रिकॉर्डर पर सीमा का गीत चलाती है और तस्वीरों का अलबम खोलती है। उन तस्वीरों में पिछले पचास बरस की जिंदगी बिखरी हुई है। अफगानिस्तान के गृहयुद्ध में मार दिए गए लोग अब केवल तस्वीरों में बचे हैं। अंतिम दृश्य में भी हम देखते हैं कि काबुल की सड़कों पर बैनर-पोस्टर लिए औरतों का विशाल जुलूस चल रहा है। औरते नारा लगा रहीं हैं- रोटी, काम, आज़ादी।

(अजित राय कला, साहित्य, रंगकर्म लेखन के क्षेत्र में सुपरिचित नाम हैं और “सारा जहां” के लिए नियमित रूप से लिखते हैं)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button