कला/संस्कृति/साहित्य

प्रेमचंद ने हिंदी कहानी के उद्देश्य को बदल दिया: वैभव मणि त्रिपाठी

सारा जहां ब्यूरो, जमशेदपुर।

कथा सम्राट प्रेमचंद की 144वीं जयंती के अवसर जमशेदपुर के एलबीएसएम कॉलेज में भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। हिन्दी-उर्दू विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में ‘कहानी लेखन प्रतियोगिता’ के विजेता विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया गया और उनकी कहानियों का पाठ भी हुआ। साथ ही, प्रेमचंद की कहानी ‘निवार्सन’ की नाट्य प्रस्तुति की गयी।

एलबीएसएम कॉलेज के सेमिनार हॉल में 31 जुलाई 2024 को हिन्दी-उर्दू विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में महान कथाकार प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर ‘कहानी लेखन प्रतियोगिता’ में पुरस्कृत विद्यार्थियों की कहानियों का पाठ हुआ और प्रेमचंद की कहानी ‘निवार्सन’ की नाट्य प्रस्तुति की गयी। आरंभ दीप प्रज्ज्वलन और प्रेमचंद की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित करने से हुई। स्वागत वक्तव्य हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. पुरुषोत्तम प्रसाद ने दिया। उसके बाद अतिथियों को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर रांची से आए लेखक-संपादक वैभवमणि त्रिपाठी ने कहा कि यह विचार का विषय है कि प्रेमचंद आज भी इतने प्रासंगिक क्यों है कि उनकी मृत्यु के 88 साल के बाद भी उनकी जन्मभूमि से दूर झारखंड के एक कॉलेज में उन्हें याद किया जा रहा है? प्रेमचंद से पहले ऐय्यारी और जासूसी कहानियां बहुत लोकप्रिय थीं। भारतीय कहानी की लंबी परंपरा में कहानियां प्रायः सुखांत होती थीं। प्रेमचंद का योगदान यह है कि उन्होंने हिंदी कहानी के उद्देश्य को बदल दिया। सुखांत से परहेज किया। लेखन और राष्ट्रसेवा के लिए अच्छी हैसियत वाली स्कूल इंस्पेक्टर की नौकरी छोड़ दी। उनकी कहानियां आज भी जनमानस को प्रभावित करती हैं। प्रेमचंद ने एक युग बनाया। ‘कहानी लेखन प्रतियोगिता’ में भाग लेने वाले विद्यार्थियों के संबंध में उन्होंने कहा कि उनमें अच्छा कहानीकार बनने की संभावना है। साहित्य के क्षेत्र में जमशेदपुर का भविष्य और बेहतर होगा, यह उम्मीद की जा सकती है।

अच्छी कहानी लिखने के लिए खूब पढ़ना जरूरी

चिकित्सक और कहानीकार डॉ. के.के. लाल ने कहानी के लिए जरूरी तत्वों का जिक्र करते हुए कहा कि अच्छी कहानी वही होती है, जो पाठकों को कल्पना के लिए उकसाये। उन्होंने कहानी में कम से कम शब्दों के इस्तेमाल का सुझाव दिया और विश्व साहित्य के उदाहरणों से बताया कि कम शब्दों में कैसे प्रभावशाली कहानी लिखी जा सकती है। उन्होंने कहा कि अच्छी प्रभावशाली कहानी लिखने के लिए खूब पढ़ना और जीवन दर्शन को समझना बहुत आवश्यक है। लेखक के समक्ष यह स्पष्ट होना चाहिए कि वह क्या कहना चाहता है?

प्रेमचंद हमारे पथ प्रदर्शक और समाज निर्माता

कहानीकार, रंगकर्मी और पत्रकार कृपाशंकर ने एलबीएसएम कॉलेज, पद्मश्री दिगंबर हांसदा और यहां के शिक्षक प्रो. राघव आलोक से अपने अंतरंग जुड़ाव का जिक्र करते हुए कहा कि जब सूचना तकनीक हमारी स्मृति को कमजोर कर रही है, तब प्रेमचंद को याद करना अत्यंत सार्थक है। वे हमारे पथ प्रदर्शक और समाज-निर्माता हैं। इनसानियत के लिए लड़ने वाले हिन्दी-उर्दू के बड़े लेखक हैं। वे जीवन भर सांप्रदायिक सद्भाव के लिए लड़ते रहे। उन्होंने कहा कि लेखक होने के लिए सपना देखना बेहद जरूरी है। ‘संगीत की धुन’ कहानी और ‘निर्वासन’ नाटक की उन्होंने तारीफ की। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि नाटक का जो कंटेट है, परिस्थितियां अब वैसी नहीं है, वे बदल चुकी हैं। अब स्त्री सहने को तैयार नहीं है।

विद्यार्थियों की सृजनात्मक क्षमता को विकसित करना होगा

आयोजन के अध्यक्ष एलबीएसएम कॉलेज के प्राचार्य प्रो. डॉ. अशोक कुमार झा ने कहा कि भारत में उसी का जन्मदिन मनाने की परंपरा रही है, जिसका जीवन सार्थक और सफल होता है। ‘निवार्सन’ नाटक का अंतिम कथन विद्रोह का सूचक है। इस तरह के आयोजनों के जरिए हमारा उद्देश्य विद्यार्थियों की सृजनात्मक क्षमता को विकसित करना है। हमें इसका मूल्यांकन करना चाहिए कि प्रेमचंद की तैयार नींव पर हम कितना आगे बढ़ पाए हैं।

‘कहानी लेखन प्रतियोगिता’ में प्रथम पुरस्कार पूजा बास्के को ‘सम्मान’ शीर्षक कहानी के लिए दिया गया। द्वितीय पुरस्कार ‘संगीत की धुन’ कहानी के लिए शगूफी परवीन को मिला। तृतीय पुरस्कार मोनिका सिंह को ‘लौटा दो मेरा बचपन’ कहानी के लिए दिया गया। इनके अतिरिक्त, पार्वती हांसदा, संध्या कुमारी, उसरा परवीन, सागर सोरेन, बीरो गोप, संजना मार्डी, प्रति जारिया, पूर्णिमा मुर्मू, अनंत कुमार झा और श्याम कुमार को सांत्वना पुरस्कार दिया गया। भूगोल के प्रोफेसर डॉ. संतोष कुमार ने पुरस्कृत कहानियों के संबंध में निर्णायक मंडल के नजरिये को सामने रखा।

‘निर्वासन’ नाटक में पति परशुराम की भूमिका में पूजा बास्के और पत्नी मर्यादा की भूमिका में कोमल कुमारी शर्मा ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया। बूढ़ी की छोटी सी भूमिका में सुनीता महाली के अभिनय की काफी तारीफ हुई। अदिति गुप्ता, गौरव प्रामाणिक, नैन्सी एक्का, तिलकेश, रुमा भकत, पियाली मंडल और लक्ष्मी सोय ने भी अपने अभिनय से नाटक की कथा को जीवंत बनाया। नाटक का निर्देशन सामूहिक था। यह नाटक और प्रतियोगिता में पुरस्कृत पहली कहानी स्त्रियों के सम्मान और जनतांत्रिक अधिकारों के सवाल को उठाने में कामयाब रहे।

आयोजन स्थल को तिलकेश, अजय सरदार, दीपा महतो, गौरव प्रामाणिक, इशा पात्रो, पूजा बारिक, दीपाली सरदार, शालिनी मार्डी, अनीता बिरुआ, फिरदा हस्सा पुर्ती, सोमबारी केरई, हीरा भूमिज, खुशी महतो, अनिशा कुमारी, प्रिया बिरुली, सुफियाना परवीन, रानी लोहार, अंकिता बास्के, लक्ष्मी सोय, रुमा भकत और वीरेंद्र सरदार द्वारा प्रेमचंद तस्वीरों और उनके उद्धरणों वाले पोस्टरों से सजाया गया था।

प्रेमचंद जयंती के इस आयोजन का संचालन हिन्दी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुधीर कुमार ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन उर्दू की विभागाध्यक्ष शबनम परवीन ने किया।

आयोजन के दौरान ही ‘साहित्य कला फाउंडेशन’ और ‘लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज’ के बीच एक एमओयू के माध्यम से ‘एलबीएसएम साहित्य कला परिषद्’ का गठन किया गया, जो छात्र-युवाओं में साहित्य, कला और सिनेमा की बेहतर समझ पैदा करने का प्रयास करेगी। डॉ. सुधीर कुमार को इसका संयोजक बनाया गया।

इस मौके पर ‘साहित्य कला फाउंडेशन’ की मुख्य न्यासी क्षमा त्रिपाठी, न्यासी बृजेश कुमार, प्रो. विनय कुमार गुप्ता, प्रो. रितु, प्रो. जया कच्छप, डॉ. डी.के. मित्रा, डॉ. अरविंद पंडित, डॉ. संचिता भुईसेन, डॉ. मौसमी पॉल, डॉ. विजय प्रकाश, डॉ दीपंजय श्रीवास्तव, प्रो. संतोष राम, प्रो. मोहन साहू, प्रो. विनोद कुमार आदि मौजूद थे।

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