आईजीएनसीए का सातवां “दीक्षा: गुरु शिष्य परम्परा” महोत्सव सोनल मानसिंह को समर्पित
राजीव रंजन
भारत प्राचीन काल से समृद्ध संस्कृति, कला और परम्परा का देश रहा है। इन अनूठी परम्पराओं में से एक है गुरु-शिष्य परम्परा। इस अद्भुत परम्परा ने भारत के ज्ञान और कला को प्राचीन काल से सहेज कर रखा है। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय का स्वायत्त संस्थान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र न्यास कला और संस्कृति के क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहा है और विविधता से परिपूर्ण भारत की विरासत के दस्तावेजीकरण और लोगों के सामने लाने के प्रयास में कला केंद्र समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करते रहता है। इसी कड़ी में गुरु-शिष्य परम्परा का उत्सव मनाने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने 2018 में “दीक्षाः गुरु-शिष्य परम्परा” उत्सव की शुरुआत की। इसमें एक महान कलाकार के शिष्य अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। इस आयोजन के माध्यम से कला केंद्र अब तक उस्ताद अमजद अली खान, पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, उत्तर भारतीय संगीत के प्रकांड विद्वान आचार्य बृहस्पति, महान नर्तक पंडित बिरजू महाराज, महान सारंगी वादक पंडित गोपाल मिश्रा की कला का उत्सव मना चुका है। “दीक्षाः गुरु-शिष्य परम्परा” का सातवां संस्करण समर्पित था महान नृत्यांगना, सांस्कृतिक विदुषी और पद्मविभूषण डॉ. सोनल मानसिंह को। यह दो दिवसीय आयोजन 12-13 नवंबर, 2022 के नई दिल्ली के जनपथ मार्ग स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के प्रांगण में संपन्न हुआ।
सातवें “दीक्षा: गुरु शिष्य परम्परा महोत्सव” का शुभारंभ डॉ. सोनल मानसिंह और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने दीप प्रज्जलन के साथ किया। दो सत्रों में आयोजित इस कार्यक्रम के सुबह के सत्र में मां कामाख्या की आराधना के साथ डॉ. सोनल मानसिंह के शिष्यों और बुद्धिजीवियों ने उनकी जीवन यात्रा के बारे में विस्तार से बताया। इस सत्र में आयोजित पैनल चर्चा में डॉ. सोनल मानसिंह ने कहा कि हर कार्य को निष्ठा से करना चाहिए। उन्होंने युवा पीढ़ी को संदेश देते हुए कहा कि किसी के साथ जुड़ें, तो उसे आदर-सम्मान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर हम अपने जुनून को पहचानते हैं, तो भाग्यशाली हैं। बहुत लोगों को अपने जुनून का पता ही नहीं चलता है। न्यूयार्क से आईं उनकी शिष्या स्वाति भिसे ने बताया कि वह डॉ. सोनल मानसिंह के साथ 1976 मे जुड़ीं थी। उन्होंने कहा कि बिना गुरु के कुछ भी संभव नहीं है। उनका सौभाग्य है कि उन्हें गुरु के रूप में सोनल मानसिंह मिलीं।
प्रोफेसर मालाश्री लाल ने डॉ. कहा कि उन्होंने सोनल मान सिंह के साथ मिलकर गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर पर काफी अध्ययन किया। उनके द्वारा दी गई शिक्षा को विश्विद्यालय के छात्र-छात्राओं को अपनाना जरूरी है। आशीष खोखर ने कहा कि डॉ. सोनल मान सिंह की कला का पूरा विश्व प्रेमी है। उन्होंने कहा कि अधूरा ज्ञान अच्छा नहीं होता। क्या हम हाफ सर्जन, हाफ डेंटिस्ट बन सकते हैं! इसलिए हाफ डांसर भी बनने से बचना होगा। वहीं, डॉ. कुमुद दीवान ने कहा कि डॉ. सोनल मानसिंह अपनी सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी स्वयं ही हैं। उनका नृत्य, ताल, राग, कंठ बहुत अच्छा है। पंडित शुभेन्द्र राव ने कहा कि सोनल जी ज्ञान से परिपूर्ण हैं। इनके अलावा, बंकिम सेठी, पल्लवी, चन्द्रकांत, नंदिनी, अर्जुन पुरी, डॉ. आनंद कुमार ने भी डॉ. सोनल मानसिंह की जीवन यात्रा पर अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर डॉ. सोनल मानसिंह की जीवनयात्रा पर आधारित चित्र प्रदर्शनी भी लगाई गई थी, जिसका अवलोकन अतिथियों ने किया। कार्यक्रम में उनके जीवन पर आधारित शार्ट फिल्म भी दिखाई गई।
इसके बाद, शाम के सत्र में डॉ. सोनल मानसिंह की पुस्तक “जिग जैग माइंड” का विमोचन पूर्व राज्यसभा सांसद और संगीत व शास्त्र के मर्मज्ञ डॉ. कर्ण सिंह ने किया। उन्होंने कहा कि नृत्य के बराबर कोई अन्य चीज नही हो सकती है। इसके लिए साधना करनी होती है। उन्होंने डॉ. सोनल मानसिंह की तारीफ करते हुए कहा कि उनका भरतनाट्यम सबसे उत्तम है। यह एक ऐसा नृत्य है, जिससे डेढ़ घण्टे में सारी रामायण देख सकते हैं। उन्होंने कहा गुरु शिष्य परम्परा हजारों वर्षों से, वेद और उपनिषदों में चली आ रही है।
वहीं, अपनी पुस्तक के बारे में बताते हुए डॉ. सोनल मान सिंह ने कहा कि 20 सालों में जो लिखा है, वह इस किताब के अंदर संग्रहित है। इस मौके पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय, सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, राज्यसभा सांसद एवं भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद (आईसीसीआर) के अध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे आदि मौजूद रहे। शाम के सत्र में सोनल मानसिंह के शिष्यों नें भरतनाट्यम, द्रोपदी आदि कार्यक्रम प्रस्तुत कर कला प्रेमियों का मन मोह लिया।
13 नवंबर को शाम में “सेंटर फॉर इंडियन क्लासिकल डांसेज” के कलाकारों द्वारा मनभावन प्रस्तुतियों के साथ दो दिवसीय कार्यक्रम “दीक्षा: गुरु शिष्य परंपरा” का समापन हो गया। कार्यक्रम के दूसरे दिन के भी पहले सत्र में पैनल चर्चा रखी गई थी, जिसमें प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों और डॉ. सोनल मानसिंह के शिष्यों ने भाग लिया। शाम के सत्र में मुख्य अतिथि थे अतिथि उस्ताद अमजद अली खान। इस अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय भी उपस्थिति रहे।
दूसरे दिन को पहले सत्र की वार्ता का प्रारम्भ डॉ. सोनल मानसिंह के संबोधन से हुआ। इस सत्र में कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सचिदानंद जोशी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. सोनल मानसिंह ने कहा कि हम अपने अंदर की आवाज को अनसुना करते हैं। हमें तिल भर आवाज अपने अंदर रखनी होगी, जहां आपकी आत्मा बोल सके, आप अपनी अंदर की आवाज सुन सकें। इसके बाद आपको अच्छे अवसर मिलेंगे। डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि कला को सीखने के लिए बच्चों को संस्थानों में जाना होगा, जिससे वह सीख सकें। आजकल ऑनलाइन शिक्षा का चलन बढ़ा है। उन्होंने कहा कि गुरु के छूने से पत्थर हीरा बन जाता है, लेकिन ऑनलाइन शिक्षा से हीरा नहीं गढ़ा जा सकता। उन्होंने कहा, “हमारे इस कार्यक्रम का उद्देश्य यह है कि युवा इस कार्यक्रम से जुड़कर कुछ सीख सकें।” उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. सोनल मानसिंह कई भाषाएं जानती हैं और वह जिस भाषा में बोलती हैं, उससे अच्छी तरह वाकिफ होती हैं और सही समय पर चीजों को याद कर लेती हैं। डॉ. जोशी ने आगे कहा कि हमें यह समझने की जरूरत है कि सोनल जी देवी नहीं हैं, वह हमीं में से एक हैं, इसलिए हमें हमेशा उनके जैसा बनने का प्रयास करना चाहिए।
वार्ता में सुजाता प्रसाद और प्रो. (डॉ.) पारुल शाह ने डॉ. सोनल मानसिंह के साथ लंबे समय के जुड़ाव पर बात की। सुजाता प्रसाद ने कुछ अनुभवों को याद किया और कहा, “ए लाइफ लाइक नो अदर” एक ऐसी किताब है, जो एक छोटी-सी किताब के रूप में शुरू हुई थी, लेकिन जो सामने आई, वह उनके जीवन पर एक किताब थी। श्री यतीन्द्र मिश्र ने डॉ. सोनल मानसिंह पर एक पुस्तक “देवप्रिया” लिखी है। मिश्र ने पुस्तक लिखने के संदर्भ में कहा कि “देवप्रिया” पुस्तक लिखते समय उन्होंने शोध करना और पढ़ना सीखा। इनके अलावा, इस सत्र में श्री प्रमोद कोहली, श्रीमती मीरा कृष्णा, श्री शांतनु चक्रवर्ती, श्रीमती रेवती रामचंद्रन, श्रीमती वनश्री राव और डॉ. नीना प्रसाद ने भी डॉ. सोनल मानसिंह की जीवन यात्रा पर विचार व्यक्त किए।
इसके बाद शाम को दूसरे सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए विश्वविख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान ने कहा कि यह बहुत खुशी का दिन है कि हम सोनल जी की जीवन यात्रा का महोत्सव मना रहे हैं। सोनल जी ने पूरी दुनिया को लुभाया है और यश प्राप्त किया है। सोनल जी का जीवन नई उम्मीदों का संदेश है। उन्होंने कहा कि स्वर और ताल का रिश्ता खून के रिश्ते से भी मजबूत होता है। उन्होंने कहा कि स्वर ही ईश्वर है। डॉ. सोनल मानसिंह के बारे में बात करते हुए श्री रामबहादुर राय ने कहा कि यह कला के प्रति सोनल जी का समर्पण ही है कि वह स्वास्थ्य संबंधी प्रतिकूल परिस्थितियों से बाहर निकलकर और अधिक मजबूती के साथ काम करने के बाद हमारे सामने खड़ी हैं। शाम के सत्र को सुरमयी बनाने के लिए मंगलाचरण, नारी तू, नाट्य कथा, भरतनाट्यम आदि सांस्कृतिक कार्यक्रम रखे गए थे। इन प्रस्तुतियों ने समां बांध दिया।