गुरु नानक देव के जीवन और दर्शन पर 11 पुस्तकों का लोकार्पण
केंद्रीय संस्कृति एवं संसदीय कार्य राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने श्री गुरु नानक देव जी के 550वें जन्मोत्सव के कार्यक्रमों की कड़ी में गुरु नानक देव जी के जीवन, दर्शन और शिक्षा पर आधारित 11 पुस्तकों का लोकार्पण किया। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा प्रकाशित इन पुस्तक के लोकार्पण में कला केंद्र के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय, कला केंद्र के ट्रस्टी श्री कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री, कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, प्रख्यात वकील व समाजसेवी श्री गुरुचरण सिंह गिल, स्वामी रामेश्वरानंद हरि और पुस्तकों के लेखक भी उपस्थित थे। इस दौरान श्री गुरु तेगबहदुर जी पर डॉ. सच्चिदानंद जोशी, अमनप्रीत सिंह गिल एवं मलकियत सिंह की पुस्तक “द सबलाइम सेवियरः लाइफ एंड लीगेसी ऑफ श्री गुरु तेगबहादुर जी” का लोकार्पण भी किया गया।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के “समवेत” सभागार में आयोजित इस लोकार्पण कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री अर्जुन राम मेघवाल ने गुरु नानक देव की एक प्रसिद्ध गुरबानी “सुमिरन कर ले मेरे मना रे/ तेरी बीती उमर हरिनाम बिना रे” गाकर सुनाई। उन्होंने कहा कि “नाम जप” का बहुत महत्त्व है और गुरु नानक देव जी ने बीकानेर क्षेत्र में एक जैन संत को यही बात बताने के लिए इस गुरबानी को स्थानीय भाषा में सुनाया था। गुरु नानक राष्ट्रीय चेतना के वाहक थे।
लोकार्पण कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में बोलते हुए श्री रामबहादुर राय ने कहा कि ये जो किताबें हैं, दूर तक जाएंगी। देश भर में, दुनिया भर में पहुंचेंगी। आज की तारीख इतिहास में दर्ज होगी। उन्होंने कहा, “जो किनारों से टकराता है, वो तूफान है/ जो तूफानों से टकराता है, वो इंसान है” और गुरु नानक वैसे ही इनसान थे। गुरु नानक ने गा-गाकर ईश्वर को पाया था।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में कला केंद्र के सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने अतिथियों और आगंतुकों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि कला केंद्र ने गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती के निमित्त देश भर में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया। 60 से अधिक वेबिनार, 40 से अधिक काव्य समागम हुए और इसी कड़ी में पुस्तकों का प्रकाशन भी किया गया। कुछ पुस्तकें पंजाबी, कुछ हिन्दी और कुछ अंग्रेजी में हैं। कुछ पांडुलिपियों का प्रकाशन भी किया गया। उन्होंने कहा कि गुरु नानक जैसे संत विरले ही होंगे, जिन्होंने 30,000 किलोमीटर से ज्यादा की यात्राएं कीं। उनकी ये उदासियां केवल धार्मिक यात्राएं नहीं थीं, बल्कि समाज और लोगों को जोड़ने का उपक्रम थीं।
लोकार्पित पुस्तकों और उनके लेखकों के नाम
- गुरु नानक देव के संवाद और समाज को मार्गदर्शन- डॉ. रतन शारदा एवं राजन खन्ना
- जनम साखी परम्परा विच गुरु नानक दर्शन- डॉ. हरपाल सिंह पन्नू
- भारतीय दर्शन दी परम्परा ते गुरु नानक बानी- प्रो. जगबीर सिंह
- गुरु नानक देव जीः अंडरस्टैंडिंग सोशल एंड इकोनॉमिक पर्सपेक्टिव- डॉ. जसविंदर सिंह और डॉ. अमनप्रीत सिंह गिल
- गुरु नानकः अ ब्रीफ बायोग्राफी- डॉ. धरम सिंह
- श्री गुरु नानक देव जी दा अध्यात्मः सामाजिक सार्थकता- डॉ. लखवीर लेजिया
- श्री गुरु नानक देव जीः लाइफ एंड टाइम्स- डॉ. जी.एस. नय्यर
- संत परम्परा ते श्री गुरु नानक देव जी- डॉ. किशन गोपाल
- एसेज ऑन द फिलॉसफी ऑफ श्री गुरु नानक देव जी- एन. मुत्थु मोहन
- भारतीय ज्ञान धारा ते गुरु नानक बानी- डॉ. एस.के. देवेश्वर
- मानवता के रक्षक- डॉ. लखवीर लेजिया
- द सबलाइम सेवियरः लाइफ एंड लीगेसी ऑफ श्री गुरु तेगबहादुर जी- डॉ. सच्चिदानंद जोशी, अमनप्रीत सिंह गिल एवं मलकियत सिंह