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विल ड्यूरान्ट ने सच को कहने की हिम्मत दिखाईः डॉ. कृष्ण गोपाल

राजीव रंजन


नई दिल्ली।
प्रसिद्ध लेखक, इतिहासकार और दार्शनिक विल ड्यूरान्ट की पुस्तक “द केस फॉर इंडिया” के हिन्दी अनुवाद “भारत का पक्षः द केस फॉर इंडिया” का लोकार्पण प्रख्यात विचारक और अध्येता डॉ. कृष्ण गोपाल ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सभागार “समवेत” में किया। इस दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह, कला केंद्र के अध्यक्ष व प्रख्यात पत्रकार श्री राम बहादुर राय, केंद्र के सदस्य सचिव व प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. सच्चिदानंद जोशी और केंद्र के डीन व कला निधि के विभाग अध्यक्ष प्रो. रमेश चंद्र गौड़ भी उपस्थित रहे। रेमाधव आर्ट प्रकाशन से आई इस पुस्तक का अनुवाद सुश्री अंशु गुप्ता ने किया है।

लोकार्पण कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में अपने वक्तव्य में डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि विल ड्यूरान्ट ने यह किताब लिख कर बहुत हिम्मत का काम किया था। अंग्रेजों द्वारा भारत के शोषण को अपनी आंखों से देखने के बाद उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या ब्रिटिश लोग वाकई सभ्य हैं? ड्यूरान्ट ने अपनी किताब के माध्यम से अंग्रेजों के उन दावों का खंडन किया कि भारत को उन्होंने सभ्य बनाया।

डॉ. कृष्ण गोपाल

इसके पूर्व विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा, कि विल ड्यूरान्ट की पुस्तक का हिन्दी अनुवाद स्वतंत्रता मिलने के 75 साल बाद हो पाया, यह दुख का विषय है। यह काम बहुत पहले होना चाहिए था। यह पुस्तक अंग्रेजी राज के अमानुषिक अत्याचारों का एक निष्पक्ष विश्लेषण है। इसके हिन्दी अनुवाद का स्वागत किया जाना चाहिए।

डॉ. सच्चिदानंद जोशी

इस अवसर पर प्रो. योगेश सिंह ने कहा, “इस किताब को 1930 के समय को ध्यान में रखते हुए पढ़ना चाहिए। यह किताब भारत की दुर्दशा का वर्णन करती है।”

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में श्री रामबहादुर राय ने कहा कि ड्यूरान्ट की किताब को इंग्लैंड में प्रतिबंधित कर दिया गया था। उन्होंने इस किताब के पुनः उपलब्ध होने की दिलचस्प कहानी के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “इस पुस्तक की आत्मा उस अध्याय में है, जिसका शीर्षक ‘1930’ है। यह पुस्तक उस भारत के खोज की कहानी है, जो जी-जान से अपनी आजादी के लिए लड़ रहा था।”

श्री रामबहादुर राय

पुस्तक की अनुवादक अंशु गुप्ता ने इस पुस्तक का एक अंश पढ़ कर सुनाया और कहा कि यह एक विदेशी इतिहासकार द्वारा ब्रिटिश शासन में भारत के शोषण का आंखोंदेखा विवरण है। प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने अतिथियों और आगंतुकों का स्वागत करते हुए कहा, “यह पुस्तक ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में किसी विदेशी द्वारा लिखी गई भारत की स्थिति की प्रामाणिक दास्तान है।”

किसी और किताब के सिलसिले में आए थे विल ड्यूरान्ट

अमेरिका के मैसाचुसेट्स में जन्मे विलियम जेम्स ड्यूरान्ट डुरान्ट या विल ड्यूरान्ट (5 नवंबर 1885- 7 नवंबर 1981) प्रसिद्ध लेखक, इतिहाकार और दार्शनिक थे। उन्होंने 11 खंडों में “द स्टोरी ऑफ सिविलाइजेशन” जैसी अत्यंत चर्चित किताब लिखी थी। उन्हें प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अपनी किताब “द स्टोरी ऑफ सिविलाइजेशन” के लिए जानकारी जुटाने के क्रम में वे सन् 1930 में भारत आए थे। अपने भारत भ्रमण के दौरान ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत के घोर शोषण को उन्होंने बहुत करीब से देखा। उन्होंने भारतीय समाज और सभ्यता का गहराई से अध्ययन किया था और भारत के पक्ष को रखते हुए “द केस फॉर इंडिया” पुस्तक लिखी। उन्होंने लिखा, “जब अंग्रेज आए, भारत राजनीतिक रूप से कमजोर था, परंतु आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध था। यह 18वीं शताब्दी के भारत की अकूत संपदा थी, जिसने इंग्लैंड और फ्रांस के व्यापारिक समुद्री लुटेरों को आकर्षित किया।”

विल ड्यूरान्ट अपनी पत्नी एरियल ड्यूरान्ट के साथ

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