कांग्रेस अपने गिरेबां में झांके
गत लोकसभा चुनावों में देश के मतदाताओं द्वारा बुरी तरह नकारी जा चुकी कांग्रेस पार्टी से अपेक्षा तो यह की जा रही थी कि वह अपने गिरेबां में झांककर उन कारणों का पता लगाने की कोशिश करेगी जिनकी वजह से स्वतंत्र भारत के संसदीय इतिहास में अब तक की सबसे शर्मनाक पराजय झेलने के लिए मजबूर होना पड़ा परंतु कांग्रेस पार्टी को अगर अब भी ऐसी जरूरत महसूस नहीं हो रही है तो यह आश्चर्यजनक बात ही मानी जा सकती है।
दरअसल कांग्रेस पार्टी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई लोकप्रियता से इतनी घबरा उठी है कि उसे अब अपने अस्तित्व पर ही खतरा मडराता दिखाई देने लगा है इसलिए वह प्रधानमंत्री मोदी पर ही निशाना साधकर अपनी खोई हुई ताकत अर्जित करना चाहती है लेकिन वह इस हकीकत को जनर अंदाज कर रही है कि ऐसी हर कोशिश से वह अपनी ही स्थिति को और हास्यास्पद बना लेती है। काश कांग्रेस पार्टी यह समझने का प्रयास करती कि मोदी पर निशाना साधने की नाकारा कोशिशों पर वह अपनी जो शक्ति जाया कर रही है उससे पार्टी की पुन: उठ खड़े होने की रही सही संभावना भी खत्म होती जा रही है। यह भी कैसी विडंबना है कि अनजाने में ही वह ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के निर्माण के प्रधानमंत्री के आव्हान को सफल बनाने में वह स्वयं परोक्ष सहयोग कर रही है।
प्रधानमंत्री मोदी से कांग्रेस की परेशानी की असली वजह यह है कि कांग्रेस के नेतृत्व में दस साल तक केन्द्र की सत्ता मेें रही यूपीए सरकार ऐसी कोई उल्लखनीय उपलब्धियां अर्जित नहीं कर पाई जिस पर वह आज गर्व कर सकने की स्थिति में होती। ऐसा होता तो गत लोकसभा चुनावों में उसकी ऐसी दुर्गति भी नहीं होती कि विपक्ष का नेता पद भी उसके हिस्से में नहीं आता। इसके विपरीत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले 16 महीनों के कार्यकाल में ही यह संदेश देने में सफल हुए हैं कि उनको प्रधानमंत्री पद की बागडोर सौंपने का जनता का फैसला पूरी तरह सही था। मोदी बिल्कुल सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रहे हैं और विदेशों में भारत की खोई हुई साख को पुन: अर्जित करने में बराबर सफलता मिल रही है। कांग्रेस को दरअसल खीज इसी बात की है कि जो भरपूर सम्मान एवं स्नेह वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री को अंतराष्ट्रीय जगत में मिल रहा है उसके हकदार पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अपने कार्यकाल में क्यों नहीं बन पाए। कांग्रेस इस हकीकत को स्वीकार करने के लिए तैयार क्यों नहीं है कि मोदी का जब विदेशी राष्ट्राध्यक्ष का गर्मजोशी के साथ आत्मीय स्वागत करते हैं तो वह दरअसल उस भारत देश के राष्ट्राध्यक्ष का सम्मान होता है जिसके प्रधानमंत्री पद की बागडोर नरेन्द्र मोदी के हाथों में है।
कांग्रेस पार्टी गत लोकसभा चुनावों में अपनी शर्मनाक हार से अपनी कुंठा और हताशा की अभिव्यक्ति जिस तरह मोदी पर निशाना साधकर कर रही है वह कांग्रेस के हित में कतई नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगर फैसबुक के दफ्तर में साक्षात्कार देते हुए अपनी मां का जिक्र आने पर भावुक हो उठते हैं तो उस पर सवाल उठाकर कांग्रेस कतई जनता की सहानुभूति अर्जित नहीं कर सकती। प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के पूर्व नरेन्द्र मोदी ने जो संघर्ष किया है उसका अहसास मोदी से अधिक आखिर कांग्रेस को कैसे हो सकता है। अगर नरेन्द्र मोदी ने बचपन में विषम परिस्थितियों का सामना करने के बावजूद धैर्य और साहस नहीं खोया तो इसका श्रेय निसंदेह उनकी मां को दिया जाना चाहिए। जिन्होंने बालक नरेन्द्र को अंदर से इतना मजबूत बनाया। मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस को मोदी की मां के सम्मान की चिंता मोदी से कही अधिक होगी। कांग्रेस के प्रवक्ता अगर यह कह रहे है कि उन्होंने पता लगा लिया है कि अतीत में मोदी का परिवार उतना गरीब नहीं था जितना मोदी आज बताते हैं तो मैं उनसे पूछना चाहूंगा कि राहुल गांधी अभिजात्य परिवार में जन्म लेने के बावजूद प्रधानमंत्री की कुर्सी स्वीकार करने से क्यों पीछे हटते रहे जबकि डॉ. मनमोहन सिंह तो हमेशा ही उनके लिए अपनी कुर्सी खाली करने को तैयार थे। प्रधानमंत्री मोदी के बचपन के दिनों के बारे में तहकीकात करने में कांग्रेस जो शक्ति जाया कर रही है वह शक्ति पार्टी को दरअसल पुनर्जीवित होने के लिए लगाए तो बेहतर होगा।
कांग्रेस पार्टी की खीज एवं तिलमिलाहट की एक वजह यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विदेशों में भारत की पिछली सरकार के कार्यकाल में हुए भयावह भ्रष्टाचार की चर्चा क्यों करते हैं। सवाल यह उठता है कि अगर संप्रग सरकार भयावह घोटले ही नहीं होने देती तो मोदी उनकी चर्चा करने के हकदार भी नहीं बनते। यह बात अपनी जगह सही मानी जा सकती है कि प्रधानमंत्री मोदी को विदेशों में भारत की केवल उज्जवल छवि ही प्रस्तुत करनी चाहिए परंतु पिछली संप्रग सरकार के प्रधानमंत्री ने अगर हमेशा गठबंधन धर्म की मजबूरी का रोना रोने के बजाय ‘छवि’ की चिंता की होती तो यह नौबत ही नहीं आती कि मोदी कांग्रेस पार्टी के सर्वेसर्वा नेताओं पर आक्रमण कर पाते।
ददरअसल प्रधानमंत्री मोदी जब भी विदेश यात्रा पर जाते हैं तब ही कांग्रेस को यह भय सताने लगता है कि कहीं संप्रग सरकार की न्यूनताओं को मोदी विदेशों में उजागर न कर दें। इसलिए कांग्रेस बराबर मोदी के भाषण पर उनके प्रतिपल के कार्यक्रमों पर पैनी दृष्टि जमाए रहती है कि मोदी कुछ कहें और उनकी आलोचना का मसाला मिल जाए। प्रधानमंत्री की किसी टिप्पणी को लेकर कांग्रेस अगर इसलिए उत्तेजित है कि वह पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को लक्ष्य करके की गई थीं तो पार्टी को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि क्या पार्टी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने पूर्व प्रधानमंत्री को सदैव अपने परोक्ष निर्देशों के दायरे में नहीं बांधे रखा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूसरी अमेरिका यात्रा और लगातार विदेश दौरों पर कांग्रेस ने हमेशा आपत्ति दर्ज कराई है परंतु कांग्रेस यह क्यों भूल रही है कि प्रधानमंत्री मोदी के सक्रिय प्रयासों के फलस्वरूप ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट की भारत की दावेदारी को पहली बार मजबूती मिली है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ प्रधानमंत्री मोदी के धनिष्ट होते दोस्ताना संबंधों का लाभ हमें सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता हासिल करने की उम्मीदें बलवती हुई हैं। केन्द्र में प्रधानमंत्री पद की बागडोर नरेन्द्र मोदी के हाथों में आने के सवा साल के अंदर ही हम इतने सफल हुए है कि संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद की सुधार प्रक्रिया प्रारंभ होने का माहौल निर्मित हो गया है तो निश्चित रूप से कांग्रेस पार्टी को इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करनी चाहिए। प्रधानमंत्री के प्रति पूर्वाग्रही रवैये का परित्याग करना स्वयं कांग्रेस के ही हित में होगा।
कृष्णमोहन झा