राज्य

क्या अमेरिकी हस्तक्षेप कबूल करेंगे आजम?

यह संयोग है कि उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खां ने संयुक्त राष्ट्रसंघ को ऐसे समय में चिट्ठी लिखी, जब सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के अभियान से मुसलमान ही हताहत हो रहे हैं। चीन अपने दो मुस्लिम बहुल सीमावर्ती प्रदेशों में इस्लामी आतंकवाद विरोधी अभियान चला रहा है।

इसमें यहां के सामान्य नागरिकों का भी चीनी सैनिक उत्पीड़न कर रहे हैं। यहां मुसलमानों का बहुमत है, लेकिन चीन इन्हें अल्पमत बना देने की रणनीति पर अमल कर रहा है। 

एक हद तक उसे कामयाबी भी मिल रही है। चीनी मूल के लोगों को योजनाबद्ध ढंग से यहां बसाया जा रहा है। प्रशासन उनका सहयोग कर रहा है। व्यवसाय और नौकरी में इनको प्राथमिकता दी जा रही है। मुसलमानों का भारी शोषण हो रहा है। उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। कम्युनिस्ट शासन विरोध की आवाज को हिंसा से दबाने के लिए कुख्यात रहा है। शिक्यांग में यही नजारा है।

सीरिया और इराक पर संकट है। आई.एस. का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। इस संकट के समाधान का नाम लेकर यहां रूस और अमेरिका के बीच घमासान चल रहा है। रूस के साथ ईरान तथा अमेरिका के साथ ब्रिटेन व फ्रांस हैं। इनके सीरिया पर हमले से मुसलमान ही मारे जा रहे हैं, लेकिन संकट का समाधान दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है।

एक माह बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार पर पहली बार लिखित दस्तावेज तैयार करने की शुरुआत होगी। भारत सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का सबसे प्रबल दावेदार है। लेकिन यह पत्र भारत विरोधी कतिपय देशों को मौका दे सकता हैं। इस पत्र में लिखी बातों पर विश्वास करें तो यह मानना पड़ेगा कि उत्तर प्रदेश सरकार कानून व्यवस्था लागू करने तथा मजहबी सौहार्द बनाए रखने में विफल है। वैसे आरोप पूरे भारत पर है। 

अमेरिका संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे शक्तिशाली देश है। इराक और अफगानिस्तान पर बड़े हमले का फैसला उसी का था, जिसे उसने सुरक्षा परिषद से मंजूर कराया था। तब कोई विरोध नहीं कर सका था उसने सद्दाम हुसैन को हटाने के लिए ऐसा सैनिक अभियान चलाया कि इराक आज तक संभल नहीं सका। 

वहां लगातार हिंसा जारी है। शिया, सुन्नी, कुर्द तीनों के बीच हिंसक नफरत व्याप्त है। अमेरिका के अपने स्वार्थ है। उसके हथियारों की बिक्री बढ़ गई। तेल कुओं पर उसकी नजर है। नाइन इलेवन में करीब चार हजार मुसलमान मारे गए थे। इसका हिसाब चुकता करने के लिए अमेरिका ने नाटो सेना के साथ अफगानिस्तान पर हमला किया था। उसने तालिबान शासन को तो नष्ट कर दिया, लेकिन उसके बाद अफगानिस्तान का एक दिन भी शांति से नहीं बीता। हिंसा में अब तक लाखांे लोग मारे जा चुके हैं।

यह उन देशों की गतिविधियां हैं जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी फैसलों को दशा-दिशा देते हैं। यही देश कभी ईरान तो कभी इराक के खिलाफ प्रतिबन्ध लगाते हैं, तेल की बिक्री को प्रतिबंधित करके यहां की अर्थव्यवस्था को चैपट करते हैं। आंतरिक टकराव को प्रोत्साहन देते है, जिससे इनके हस्तक्षेप की गुंजाइश बनी रहे। साथ ही उनकी हथियार निमार्ता कंपनियों का मुनाफा बढ़ता रहे। 

किसी को यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव को चिट्ठी लिख दी तो वह समस्या का समाधान कर देंगे। सच्चाई यह है कि अमेरिकी फैसले के सामने उनकी आवाज भी दब जाती है। वह अपील करते हैं, लेकिन कोई उस पर ध्यान नहीं देता। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र महासचिव को चिट्ठी या उनसे मुलाकात का खास व्यावहारिक महत्व नहीं होता। 

ऐसी चिट्ठी किसी देश के एक प्रदेश का मंत्री लिखे तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वैसे भी उसकी कोई अहमियत नहीं होती। यदि उस देश में गृहयुद्ध चल रहा हो तो बात अलग है, लेकिन भारत की छवि ऐसी नहीं है।

विश्व में ऐसा दूसरा कोई देश नहीं है, जहां इतनी विविधता के बावजूद आमतौर पर लोग सौहार्द के साथ रहते हैं। कुछ घटनाएं अवश्य चिंताजनक होती है, लेकिन यह भारत की धर्मनिरपेक्ष तस्वीर को बिगाड़ नहीं सकती। संयुक्त राष्ट्र संघ में ऐसा दूसरा कोई देश नहीं है।

पहले इस पर विचार करें कि जिनके सामने भारत का मसला भेजा गया उसके जिम्मेदार सदस्यों के देश में क्या हो रहा है। नाइन इलेवन के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों मंे मुसलमानों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है। उन पर राह चलते हमले होते हैं। तलाशी के नाम पर उनके साथ अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार किया जाता है।

क्या संयुक्तराष्ट्र संघ के ये सर्वाधिक महत्वपूर्ण देश भारत की समस्या का समाधान करेंगे? यह आश्चर्यजनक है कि आजम खां ने संयुक्त राष्ट्र संघ की हकीकत जानते हुए यह पत्र लिखा। इसकी सम्पूर्ण निर्णय प्रक्रिया विकसित देशों के इर्द-गिर्द घूमती है। वह देश मुसलमानों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं, यह दुनिया के सामने है। 

अच्छी बात यह है कि इस विश्व मंच पर आजम खां की कोई पहचान नहीं है। यह तय है कि निर्णय करने वाले देश इस पत्र को कोई महत्व नहीं दंेगे। हां, पाकिस्तान जैसे देश अपने फायदे के लिए इसका उपयोग कर सकते है। जिस प्रकार संप्रग सरकार के समय उन्होंने कांग्रेस नेताओं द्वारा कहे गए हिंदू आतंकवाद राष्ट्र का प्रयोग भारत के खिलाफ किया था। जब भारत सीमापार आतंकवाद रोकने की बात करता था, तब पाकिस्तान भारतीय नेताओं द्वारा उपलब्ध कराए गए हिंदू आतंकवाद शब्द का प्रयोग करता था। 

वह कहता था कि भारत अपना आतंकवाद रोके, जबकि ऐसा कुछ नहीं था। आज एक बार फिर वैसा ही हथियार पाकिस्तान जैसे देश को उपलब्ध कराया गया है। वह इस पत्र के अनुसार भारत में मुसलमानों की स्थिति का मुद्दा उठाएगा। जबकि मुसलमान पाकिस्तान की अपेक्षा भारत में अधिक सुरक्षित हैं, अधिक सौहार्द के साथ रहते हैं। 

पाकिस्तान में तो नमाज पढ़ते समय एक दूसरे समुदाय पर हमले होते है। बलूचिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों तथा मुजाहिदों के साथ अमानवीय व्यवहार होता है। ये सभी मुसलमान हैं। बिडंबना देखिए यदि संयुक्त राष्ट्र आजम के पत्र पर विचार करेगा तो उसमें पाकिस्तान का भाषण भी होगा। कतिपय घटनाओं के आधार पर भारतीय मुसलमानों के बारे में ऐसे निष्कर्ष निकालना और संयुक्त राष्ट्र को पत्र भेजना घोर आपत्तिजनक है। 

यह भारत के राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल है। यह उत्तर प्रदेश सरकार की प्रतिष्ठा धूमिल करने वाला पत्र है। कानून व्यवस्था उसी का विषय है। घर की बात घर में रहनी चाहिए। हमारी समस्याओं का समाधान हमी को करना है। संयुक्त राष्ट्र कश्मीर पर कुछ नहीं बोल सका तो आजम के पत्र पर क्या बोलेगा। केवल यही राहत की बात है।

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button