फोटो प्रदर्शनी के माध्यम से जनजातीय जीवन और संस्कृति की झलक
राजीव रंजन
भारतीय संस्कृति और इतिहास में जनजातीय समुदायों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। यही नहीं, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी उनकी भूमिका उल्लेखनीय है। बिरसा मुंडा, सिद्धो-कान्हो और ताना भगत आंदोलन ने अंग्रेजी शासन को हिला कर रख दिया था। इस संदर्भ में वर्ष 1800 से लेकर 1925 तक चला भील विद्रोह भी उल्लेखनीय है। इसमें 200 से अधिक भील मुखियाओं ने खानदेश (मुंबई से लगभग 300 किमी उत्तर-पश्चिम में, महाराष्ट्र के दक्षिणी पठार के उत्तरी-पश्चिमी कोने पर स्थित प्रसिद्ध ऐतिहासिक क्षेत्र), मध्यभारत और महाराष्ट्र में संघर्ष की मशाल जलाए रखी। टंट्या भील इस कड़ी में एक महत्त्वपूर्ण नाम है। लेकिन दुर्भाग्य है कि इतिहासकारों ने जनजातीय समुदायों से ताल्लुक रखने वाले इन महानायकों को महत्त्व नहीं दिया।
भारत में जनजातीय समुदाय के योगदान को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को हर साल ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया है। इस अवसर पर इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने अपने परिसर में स्थित ‘दर्शनम’ कला दीर्घा में जनजातीय जीवन और संस्कृति पर एक फोटो प्रदर्शनी का आयोजन किया है।
प्रदर्शनी का उद्घाटन पूर्व केंद्रीय मंत्री, वर्तमान में लोकसभा सांसद एवं रक्षा मामलों पर संसदीय समिति के अध्यक्ष जुएल ओरांव ने किया। उद्घाटन के मौके पर इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी भी मौजूद रहे।
इस प्रदर्शनी में शामिल छायाचित्र फोटो जर्नलिस्ट सतीश लाल आंदेकर के हैं। उन्होंने ये फोटोग्राफ 12 वर्षों की अवधि के दौरान लिए हैं और इस दौरान उन्होंने कई दिन जनजातीय समुदाय के बीच बिताए। इस क्रम में उन्हें काफी प्रतिकुलताओं और कठिन परिस्थितयों का भी सामना करना पड़ा। इस प्रदर्शनी में दस राज्यों के जनजातीय समुदायों की संस्कृति और परम्परा को प्रदर्शित किया गया है। प्रदर्शनी 21 नवंबर तक चलेगी।
प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए श्री जुएल ओरांव ने सरकार द्वारा 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाए जाने के फैसले पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, “आज माननीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू गईं। मैंने वर्षों पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को वहां ले जाने की कोशिश की थी, लेकिन वहां इतने ऊंचे-ऊंचे पेड़ थे, इतना घना जंगल था कि एक साथ तीन हेलिकॉप्टर उतर नहीं सकते थे। एक हेलिकॉप्टर लैंड किया, बाकी दो लैंड नहीं कर सके। इसलिए अटल जी ने कहा कि आप ही चले जाओ… गाड़ी वहां जा नहीं सकी, तो मैं कुछ दूर मोटरसाइकिल से और दो-तीन किलोमीटर पैदल चल कर पहुंचा। उस दुर्गम जंगल से बिरसा मुंडा ने इतना बड़ा आंदोलन खड़ा किया और केवल 25 साल के अपने जीवन में अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया।” श्री ओरांव ने कहा कि भारत के इतिहास में इस तरह का कोई दूसरा आंदोलन नहीं हुआ है, लेकिन इतिहासकारों और दूसरे लोगों ने इसकी अनदेखी की। “जनजातीय गौरव दिवस” के आयोजन से लोगों को बिरसा मुंडा की विरासत और भारतीय जनजातीय समुदाय के इतिहास और संस्कृति में योगदान के बारे में पता चलेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि अब बिरसा मुंडा के गांव में काफी काम हुआ है। सड़कें और स्कूल बन गए हैं। लोगों को वहां जाकर “उलगुलान” के महानायक बिरसा मुंडा की विरासत को जरूर देखना चाहिए।
इस फोटोग्राफी प्रदर्शनी को देखने के बाद भारत के जनजातीय समाज की जीवनशैली, उनकी संस्कृति और परम्परा के बारे में विस्तार से जानने का मौका मिलेगा। फोटोग्राफर सतीश आंदेकर ने जनजातीय जीवन को बहुत सूक्ष्मता और सुंदरता के साथ अपने कैमरे में कैद किया है।