बिहार चुनाव: चौधरी, मांझी में किला बचाने, ध्वस्त करने की जंग
गया: बिहार विधानसभा चुनाव में गया जिले के नक्सल प्रभावित इमामगंज विधानसभा क्षेत्र की लड़ाई काफी दिलचस्प हो गई है। इस क्षेत्र की लड़ाई मुख्यत: दो योद्घाओं- विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी द्वारा किला बचाने तथा पूर्व मुख्यमंत्री व हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख जीतन राम मांझी द्वारा चौधरी के किले को ध्वस्त करने के रूप में देखी जा रही है।
इमामगंज की सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने जहां मांझी को उम्मीदवार बनाया है, वहीं सत्तारूढ़ महागठबंधन ने जनता दल (युनाइटेड) के कद्दावर महादलित नेता व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी को उम्मीदवार बनाया है।
चौधरी और मांझी के बीच एक अरसे से और खासतौर से इस वर्ष विधानसभा में मांझी के शक्ति परीक्षण के समय विधानसभा अध्यक्ष के रूप में चौधरी द्वारा उन्हें तथा जद (यू) से अलग होने वाले उनके आठ और समर्थक विधायकों को मान्यता नहीं देने के बाद आपसी संबंध बेहद खराब हो गए। मांझी, चौधरी के साथ हिसाब बराबर करने के इरादे से ही इमामगंज से भी चुनाव लड़ रहे हैं।
नक्सलियों के प्रभाव वाले क्षेत्र कहे जाने वाले इमामगंज में हालांकि चौधरी के करीबी रिश्ते मांझी के मुकाबले उनके सामाजिक समीकरण को भारी बनाते हैं।
इमामगंज के सड़क किनारे अपने खेतों में काम कर रहे 60 वर्षीय रामकेवल कहते हैं, “यहां कोई भी चुनाव लड़ने आ जाए, परंतु हमलोग विधायक जी (उदय नारायण चौधरी) को ही वोट देंगे। वे लोगों के सुख-दुख में शामिल होते रहते हैं।” करीब-करीब यही बात 50 वर्षीय मजदूर खेलावन मांझी भी कहते हैं कि विधायक जी बहुत मिलनसार हैं।
पिछले चार चुनावों में चौधरी का मुकाबला राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से होता रहा है और हर चुनाव में चौधरी ने बाजी मारी है, परंतु इस चुनाव में परिस्थितियां बदली हैं, राजद और जदयू अब एक साथ हैं।
करीब 2़ 29 लाख मतदाताओं की संख्या वाले इमामगंज विधानसभा क्षेत्र में मतों की बहुलता की दृष्टि से महादलित वोट सबसे अधिक हैं। इसके बाद अतिपिछड़ा व पिछड़ी जातियों के वोट हैं। अगड़ी जातियों का वोट यहां काफी कम है। मौजूदा समीकरणों पर पूर्व मुख्यमंत्री मांझी के असर को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
गया के एक विद्यालय से सेवानिवृत्त होने के बाद बांकेबाजार में रहने वाले शिक्षक रामप्रवेश सिंह कहते हैं कि राजनीति की दिशा ही बदल गई है। वैसे अब युवा विकास की बात करने लगे हैं। यह लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत हैं।
इमामगंज विधानसभा क्षेत्र के बांकेबाजार के 20 वर्षीय युवा मतदाता अनुज कुमार वर्तमान नीतीश सरकार से काफी नाखुश हैं। वे कहते हैं, “नक्सल प्रभावित इमामगंज को पुलिस अनुमंडल बनाए जाने की घोषणा के बाद भी यहां कोई काम नहीं हो पाया। पावर ग्रिड बनने के बाद भी ग्रामीण इलाकों में बिजली की आपूर्ति बेहतर नहीं हो पाई है। सिंचाई की व्यवस्था नहीं होने के कारण यहां हजारों एकड़ भूमि बेकार पड़ी रहती है।”
आखिर विकास की बात करने वाले सरकार में ही यहां के विधायक थे, आखिर क्षेत्र के लिए उन्होंने क्या किया?
वर्ष 2000 से 2010 तक हुए चार विधानसभा चुनावों में राजद प्रत्याशियों ने यहां के मौजूदा विधायक चौधरी को जबरदस्त टक्कर दी है। वर्ष 2000, फरवरी 2005 व अक्टूबर 2005 में हुए चुनाव में राजद के रामस्वरूप पासवान दूसरे स्थान पर रहे थे। 2010 के चुनाव में रामस्वरूप पासवान की जगह राजद ने रोशन मांझी को मैदान में उतारा था।
गया के वरिष्ठ पत्रकार कंचन कुमार सिन्हा कहते हैं कि मांझी कई विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ चुके हैं और अपने लंबे राजनीति जीवन में उनके दांगी व कुशवाहा जैसी जातियों के साथ अच्छे संबंध रहे हैं। इस क्षेत्र में मांझी मतदाताओं की संख्या भी 50 हजार से अधिक है। चौधरी के भी क्षेत्र के लोगों से अच्छे संबंध रहे हैं और उनकी चुनावी कामयाबी के पीछे यह बड़ा कारण भी रहा है।
सिन्हा कहते हैं, “इस चुनाव में इमामगंज की सीट महत्वपूर्ण सीट है और चौधरी तथा मांझी में सीधी टक्कर है। मांझी जहां चौधरी का किला ध्वस्त करने की लड़ाई लड़ रहे हैं वहीं चौधरी अपने किले को सुरक्षित रखने की जुगत में हैं।”
बहरहाल, इमामागंज में दूसरे चरण के तहत 16 अक्टूबर को मतदान होना है। मतदाता किसके उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं यह तो आठ नवंबर को मतदान के दिन ही पता चल सकेगा। बिहार में 243 सीटों के लिए 12 अक्टूबर से पांच नवंबर के बीच पांच चरणों में मतदान होना है।
मनोज पाठक