रवींद्र जैन: मन की आंखों से देखी दुनिया, रचा संगीत संसार
नई दिल्ली: हिंदी सिनेमा में फिल्म ‘सौदागर’ से पदार्पण करने वाले संगीतकार और गीतकार रवींद्र जैन हम सबको अलविदा कह गए हैं। उन्होंने मुंबई के लीलावती अस्पताल में शुक्रवार शाम अंतिम सांस ली।
हम सबके बीच केवल उनकी यादें और उनका रचा संगीत संसार ही शेष हैं।
‘राम तेरी गंगा मैली’, ‘दो जासूस’ और ‘हीना’ जैसी फिल्मों में संगीत देने वाले संगीतकार ने मशहूर धारावाहिक ‘रामायण’ को अपनी आवाज और धुनों के जरिए घर-घर में लोकप्रिय बनाया। 1980 और 1990 के दशक में जैन ने कई पौराणिक फिल्मों और धारावाहिकों में संगीत दिया था। रवींद्र जैन दृष्टिबाधित थे, इसके बावजूद उन्होंने एक से बढ़कर एक गीत रचे और सुरीले नगमे दिए, जिन्हें हम बार-बार सुनना पसंद करते हैं।
फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ के लिए रवींद्र जैन को फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार भी मिला है। उन्होंने अपने जीवन में कई उपलब्धियां हासिल की हैं। उन्होंने अपने पिता के कहे मार्ग पर चलकर वह सब कुछ हासिल किया, जिसके वह हकदार थे। उन्होंने दुनिया को अपने मन की दृष्टि से देखा, समझा और अपने ही रचे गीतों को मधुर धुनों से सजाया। दुनिया उनके मधुर गीतों के लिए हमेशा उनकी ऋणी रहेगी।
व्यक्तिगत जीवन :
रवींद्र जैन का जन्म 1944 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। वे सात भाई-बहन थे। संगीत का मार्ग उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए चुना, उनके पिता ने उन्हें यह मार्ग इसलिए सुझाया, क्योंकि इसमें आंखों का कम उपयोग होता है। काम में प्रति बेहद उनकी बेहद रुचि थी।
कम उम्र में ही वे पास के जैन मंदिर में भजन गाने लग गए थे। वर्ष 1972 में उन्होंने अपने फिल्मी कॅरियर की शुरुआत की। दक्षिणी भारत के गायक के.जे. येसुदास के वे काफी मुरीद थे। ‘तेरी तस्वीर को सीने से लगा रखा है’ सहित रवींद्र के कई गीत येसुदास ने गाए हैं। उनकी चाहत येसुदास को देखने की थी, जो कभी पूरी न हुई।
रवींद्र जैन के लोकप्रिय गीत :
गीत गाता चल, ओ साथी गुनगुनाता चल (गीत गाता चल-1975),
जब दीप जले आना (चितचोर-1976),
ले जाएंगे, ले जाएंगे, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (चोर मचाए शोर-1973),
ले तो आए हो हमें सपनों के गांव में (दुल्हन वही जो पिया मन भाए-1977),
ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए (पति, पत्नी और वो-1978),
एक राधा एक मीरा (राम तेरी गंगा मैली-1985),
अंखियों के झरोखों से, मैंने जो देखा सांवरे (अंखियों के झरोखों से-1978),
सजना है मुझे सजना के लिए (सौदागर-1973),
हर हसीं चीज का मैं तलबगार हूं (सौदागर-1973),
श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम (गीत गाता चल-1975),
कौन दिशा में लेके (फिल्म नदियां के पार),
सुन सायबा सुन, प्यार की धुन (राम तेरी गंगा मैली-1985),
मुझे हक है (विवाह)।
भजन : मथुरा में कृष्णा, गणपतीचे दर्शन घेवूया, श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे।
संगीत की दुनिया के सरताज रवींद्र जैन आज हम सबके बीच नहीं हैं, केवल रह गई हैं तो सिर्फ उनकी यादें और उनके मधुर संगीत, जिससे वह हम सबके बीच हमेशा-हमेशा के लिए अमर रहेंगे।
शिखा त्रिपाठी