राज्य

बिहार चुनाव में मुद्दों पर हावी ‘बदजुबानी’

पटना: बिहार के चुनावी समर में उतरने से पहले तकरीबन सभी राजनीतिक दल बिहार की तस्वीर बदलने के वादे के साथ लोकतांत्रिक शुचिता की बात कर रहे थे, लेकिन मतदान की तारीखें करीब आते ही उनके सुर बदल गए हैं।

राज्य के चुनावी माहौल पर अब जाति और संप्रदाय की बात के बहाने ‘बदजुबानी’ हावी होती जा रही है। 

विधानसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ इन नेताओं के बदजुबानी ‘ब्रह्मास्त्र’ बन गई है, वहीं जातियों के नाम दिए गए भाषण उत्प्रेरक बने हुए हैं। ऐसा नहीं कि इसमें कोई एक दल के नेता शामिल हैं, बल्कि सभी दलों के नेताओं के बीच मानो बदजुबानी और जातियों के नाम पर वोट पाने के लिए एक-दूसरे के आगे निकलने की होड़ मची हो। 

वैसे जनता भी इन भाषणों को सुनकर तृप्त होकर नेताओं की ‘हां’ं में ‘हां’ मिला रही है और भाषणों को सुनकर जमकर तालियां बजा रही है। नेता भी इन तालियों को मतों से जोड़कर देख रहे हैं। 

हाल के दिनों में इन नेताओं में बिहार के विकास, विधि-व्यवस्था की बिगड़ती हालत, महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर उबला गुस्सा काफूर हो गया है। 

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद जहां सोशल मीडिया के द्वारा कई विवादास्पद बयानों को देकर बिहार की राजनीति को गर्म कर दिया है, वहीं उनके आरोपों का जवाब देने में विरोधी पार्टियां भी बदजुबानी पर उतर रही हैं। 

लालू प्रसाद ने जहां गोमांस को लेकर विवादास्पद बयान देते हुए कहा कि हिंदू भी गोमांस खाते हैं। इसके बाद लालू ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को ‘नरभक्षी’ तक कह डाला। इसके बाद नेताओं ने बयानों की ऐसी झड़ी लगाई कि सभी मर्यादाएं टूट गईं। 

एक अन्य मौके पर लालू प्रसाद ने इस चुनाव को देवसेना (राजद-जदयू-कांग्रेस महागठबंधन) तथा दूसरी ओर राक्षसी सेना (भाजपा नीत राजग गठबंधन) के बीच मुकाबला करार दिया। 

चुनाव के इस मौसम में वैसे लालू को फिल्मी गाने भी बहुत याद आ रहे हैं। पिछले दिनों एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “यह मेरा वादा है कि महागठबंधन के जीतने की स्थिति में नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे।” और इसके बाद गाने लगे, “जब प्यार किया तो डरना क्या।” 

भाजपा अध्यक्ष अमित ने भी बयानों की मर्यादा तोड़ते हुए राजद अध्यक्ष को एक जनसभा में ‘चाराचोर’ तक कह डाला। 

बक्सर से भाजपा सांसद अश्विनी चौबे ने कुछ दिन पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को ‘जहर की पुड़िया’ और ‘पूतना राक्षसी’ (जिसे भगवान श्रीकृष्ण के वध के लिए कंस ने भेजा था) तथा राहुल गांधी को ‘विदेशी गर्भ से पैदा हुआ तोता’ कहकर मर्यादा की सभी सीमाएं लांघ दी थीं। 

इधर, जन अधिकार पार्टी के प्रमुख पप्पू यादव ने लालू के गोमांस पर दिए बयान के बाद छिड़े वाक्युद्ध पर सोमवार को सार्वजनिक रूप से कहा, “बिहार में जितने भी नेता लोग हैं, आदमी का खून पी-पीकर मोटा गए हैं। अब इन लोगों को जानवरों की चिंता होने लगी है। कोई विकास की बात नहीं कर रहा है।” 

पप्पू ने इससे पहले बिहार के शिक्षकों को निशाने पर लिया था। उन्होंने कहा था कि बिहार के शिक्षक जानवरों को पढ़ाने के लायक भी नहीं हैं तो छात्रों को क्या पढ़ाएंगे। 

ऐसा नहीं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अपने बयानों से राजनीतिक मर्यादा नहीं तोड़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा का उद्देश्य बेकार है। अमेरिका में उनके दिए भाषण का बिहार के लोग क्या ‘अचार’ डालेंगे? 

वैसे तय है कि चुनाव समाप्त होने तक कई और तरह के बयान सामने आएंगे, जिसमें राजनीति की मर्यादा टूटेंगी। बहरहाल, चुनावों की इस प्रतिष्ठा की लड़ाई में सारे आदर्श और सारे सिद्धांत भुला दिए गए हैं और सभी दल विजयी होने के लिए हर पैंतरा आजमा रहे हैं। 

बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला राजग और सत्तारूढ़ महागठबंधन के बीच माना जा रहा है, लेकिन अब इसमें वामपंथी दलों के मोर्चे के अलावा समाजवादी पार्टी नीत मोर्चे के भी कूद पड़ने से मुकाबला बहुकोणीय नजर आने लगा है। 

बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए 12 अक्टूबर से लेकर पांच नवंबर तक पांच चरणों में मतदान होना है। मतों की गिनती आठ नवंबर को होगी।

मनोज पाठक

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