कला/संस्कृति/साहित्य

शिव-कृष्ण उतर आए कथक के इस महारास में

साराजहां संवाददाता

कथक के देवता शिव और कृष्ण माने जाते हैं। प्राचीन काल में कथक को कुशिलव कहा जाता था। उत्तरी भारत के नृत्यों में इसे प्रमुखता से माना-जाना गया है। कथक दरअसल एक शास्त्रीय नृत्य है। यह शब्द कथाकार से आया है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है कहानी सुनाने वाला। कथा करे, सो कथाकार । इसका सीधा अर्थ है- कहानी जो कहे , वह कथाकार। कथक भारतीय नृत्य के नौ प्रमुख रूपों में से एक है। मुगल शासन के आख़िरी शासक नवाब वाजिद अली शाह ने इसे खासा तवज्जो दिया था।

बाद के दिनों में लखनऊ घराना के पंडित बिरजू महाराज ने इसे शीर्ष तक पहुंचाया। यह घराना बिंदादिन के नाम भी मशहूर है। पंडित बिरजू महाराज के ही सुपुत्र हैं पंडित दीपक महाराज। उन्होंने इस परंपरा को आगे बढ़ाया है और इनके छाए में आज कई शाखें फल-फूल और सुगंधित हो रही हैं ।

दिल्ली के द्वारका, सेक्टर-5 का कलांगन फाउंडेशन (स्कूल ऑफ डांस एंड म्यूजिक ) एक ऐसा ही संस्थान है जहां कथक के गुर बताए-सिखाए जाते हैं। इस संस्थान की संस्थापक-डायरेक्टर शालू श्रीवास्तव हैं , जो इस दुनिया का एक जाना-पहचाना नाम हैं। वे भोपाल से हैं और एक इंटरनेशन कथक नृत्यांगना व गुरु हैं। इस संस्था ने हाल में कथक पर दो दिनों का वर्कशॉप रखा था, जो पंडित दीपक महाराज की अगुवाई में संपन्न हुआ।

यह पुरोगम पंडित बिरजू महाराज को समर्पित था, जिसमें दोनों गुरुओं ने कथक की बारीकियों को गहराई से समझाया और कथक विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। वर्कशॉप में कथक के जानकारों ने जम कर हिस्सा लिया और आनंद प्राप्त किया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button